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समानांतर लोकतंत्र :सीधे समानांतर कार्यवाही करने के लिए शक्ति

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समानांतर लोकतंत्र की अवधारणा जनता को सीधे समानांतर कार्यवाही करने के लिए शक्ति देने पर आधारित है।फ्रांसीसी क्रांति से लेकर अब तक जनता को सिर्फ अधिकार देने की बात हुई,शक्ति की कभी भी नहीं हुई।सूचना का अधिकार,विरोध का अधिकार,अभिव्यक्ति का अधिकार आदि।सूचना का अधिकार को सूचना की शक्ति में कैसे तब्दील किया जा सकता है?मान लीजिए कि लोक सूचना अधिकारी ने गलत सूचना दिया,जिसके विरुध्द आपने प्रथम अपील किया लेकिन प्रथम अपीलीय प्राधिकारी ने लोक सूचना अधिकारी के पक्ष में ही गलत फैसला सुना दिया।फिर आपने सूचना आयोग में द्वितीय अपील किया और सूचना आयोग ने लोक सूचना अधिकारी को दोषी ठहराते हुए जुर्माना लगा दिया लेकिन सरकार ने जुर्माना नहीं वसूला।अब यहीं पर सीधे कार्यवाही करने की प्रक्रिया प्रारंभ होगी।यदि सरकार जुर्माना नहीं वसूल रही है तो जनता लोक सूचना अधिकारी को नोटिस भेज सरकारी कोष में जुर्माना जमा करने कहेगी।फिर भी जुर्माना जमा नहीं करने पर जनता उस अधिकारी को पकड़कर 1-2 महीने के लिए खुद जेल बनाकर उसे जेल में डाल देगी।ये हुई सूचना की शक्ति।शासन-तंत्र को शक्ति देने के साथ जनता को शक्ति देने पर ही संतुलन की स्थिति बन सकती है।

किसी भी देश के संविधान में जनता को सिर्फ अधिकार दिया गया है,शक्ति नहीं दिया गया है।जनता के पास असीमित आंतरिक शक्ति है,ये मेरी चर्चा का विषय नहीं है।मैं संवैधानिक शक्ति देने की बात कर रहा हूँ और संवैधानिक शक्ति सरकार द्वारा नहीं दिए जाने पर जनता द्वारा खुद समानांतर संविधान बनाकर शक्ति लेने की।
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पूरे आदेश की सच्ची प्रतिलिपि प्राप्त नहीं होने के कारण सलमान खान को दो दिन की अंतरिम जमानत देना CrPC में निहित प्रावधानों के विरुध्द है।बॉम्बे हाईकोर्ट का जज जिन्होंने सलमान को जमानत दिया और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे जिन्होंने सलमान के पक्ष में बहस किया,ये लोग खुद नहीं बता सकते हैं कि पूरे आदेश की सच्ची प्रतिलिपि प्राप्त नहीं होने पर अंतरिम जमानत देने का क्या प्रावधान है।

सवाल ये भी है कि जज ने पूरे आदेश को देखे बगैर ही अंतरिम जमानत कैसे दे दिया।
CrPC का धारा 235 के तहत दोषी करार देने के बाद सजा सुनायी जाती है।लेकिन धारा 235 में ये नहीं लिखा है कि सजायाप्ता/दोषी करार या अपीलीय अदालत को सच्ची प्रतिलिपि प्राप्त नहीं होने पर सजायाफ्ता/दोषी करार को जेल नहीं भेजा जाएगा।इसके विपरीत सजा सुनाने से पहले ही दोषी करार देने के साथ ही अभियुक्त को हिरासत में ले लिया जाता है और दूसरे दिन सजा सुनाने का तारीख तय होने पर जेल भेज दिया जाता है।मतलब सिर्फ दोषी कारण देने पर ही सजा सुनाए बगैर और आदेश की सच्ची प्रतिलिपि के बगैर जेल भेज दिया जाता है।ज्यादातर केस में ऐसा ही होते आया है।फिर सलमान के केस में विशिष्ट व्यवहार क्यों?

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The High Court of Patna even didn’t send notice to the informant victim who was shot by the fire arms(anyway saved) resulting in the granting of bail to the 10 years imprisoned accused u/s 307 IPC.In this case,i personally helped victim even knowing that the accused is my family relative.It was apprehension that the accused would be acquitted u/s 27 of the Arms Act,1959 ,as the counsel for the defence had argued that the prosecution had not taken the prior sanction of the District Magistrate to prosecute under this section.Prosecution lawyer had no argument to cross the defence.I gave prosecution lawyer a High Court judgement ruling that no prior sanction of the District Magistrate is required for prosecution u/s 27 Arms Act,resulting in 5 years imprisonment to the accused under this section along with above imprisonment u/s 307 IPC.It is well settled that the state(APP) fights case on behalf of the informant,but it shouldn’t mean that the notice won’t be sent to the informant to make his representation by the lawyer of his own choice.

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