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अंततः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को झुकना पड़ा

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यह संभवतः पहला केस है जिसमें मानवाधिकार आयोग ने तीन बार बहाना बनाकर शिकायत को निष्तारित कर दिया और चौथी बार संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए शिकायत को भेजना पड़ा।समस्तीपुर नवोदय के प्राचार्य द्वारा वहाँ के छात्र/छात्राओं से जबरन वसूली के विरुध्द दायर कराए गए शिकायत को पहली बार(फाइल नं 3683/4/30/2014) आयोग ने ये कहकर निष्तारित कर गया कि आवेदन का सिर्फ छायाप्रति भेजा गया।जिसके विरुध्द मैंने शिकायत दर्ज कराया कि आवेदन की मूल प्रति दस जगह एक साथ सभी को संबोधित करते हुए भेजी गई और कहीं भी छायाप्रति नहीं भेजी गई।जिसपर दूसरी बार(केस नं 3862/4/30/2014) सुनवाई करते हुए आयोग द्वारा ये कहकर केस बंद कर दिया गया कि मामला मानवाधिकार हनन का नहीं है।इसके विरुध्द शिकायत दर्ज कराया कि जबरन वसूली आर्थिक व मानसिक प्रताड़ना होने के कारण अनुच्छेद 21 का हनन है और गरिमा,स्वतंत्रता आदि का हनन करने के कारण मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(d) के तहत मानवाधिकार का भी हनन है जिसपर तीसरी बार(फाइल नं 4193/4/30/2014) सुनवाई करते हुए आयोग ने पुनः ये कहकर केस बंद कर दिया कि मामला मानवाधिकार हनन का नहीं है।
संभवतः इस आवेदन को ही आयोग द्वारा पुनः सुनवाई के लिए फाइल नं 4563/4/30/2014 के माध्यम से निबंधित किया गया।इस बार आयोग ने शिकायत को संबंधित विभाग को 8 सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्रवाई कर कृत कार्रवाई से आवेदक को सूचित करने का आदेश देते हुए अग्रसारित कर दिया।मतलब आयोग ने मान लिया कि मामला मानवाधिकार हनन का है।
nhrc.nic.in पर फाइल नं 4563/4/30/2014 डालकर स्टेटस चेक करने पर सिर्फ इतना पता चल पाया है कि शिकायत को संबंधित विभाग को भेजा गया है।शिकायत को संभवतः केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय भेजा गया होगा।आयोग का पत्र प्राप्त होने के बाद ही पता चल पाएगा कि किसे भेजा गया है।जिसे भी भेजा गया हो लेकिन ये लोग जांच करते ही नहीं या जांच करते भी हैं तो जांच रिपोर्ट प्रीफिक्स होता है।हालांकि यदि विद्यालय के छात्र/छात्राओं से बाहर का कोई अधिकारी आकर पूछताछ करे तो जरुर बयान दे कि रुपये वसूला गया है। विद्यालय के कुछ विद्यार्थियों द्वारा सूचना देने के बाद ही शिकायत दायर कराया गया था।मेरे लिए ये एक अच्छा अनुभव रहा कि अंततः आयोग को मानना पड़ा कि मामला मानवाधिकार हनन का है।

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