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प्रधानमंत्री कार्यालय ने लोकपाल के गठन में विलंब के विरुध्द दायर किए गए सूचना आवेदन को कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के सचिव को जवाब देने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 की धारा 6(3)(ii) के तहत हस्तांतरित कर दिया है।धारा 6(3)(ii) के तहत हस्तांतरण का मतलब हुआ कि मेरा सवाल प्रधानमंत्री कार्यालय से ज्यादा कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग से संबंधित है।लोकपाल का गठन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन कमिटि द्वारा किया जाना है।इसलिए मेरा सवाल प्रधानमंत्री कार्यालय से ज्यादा जुड़ा है,ना कि कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग से।1 जनवरी 2014 को लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम,2013 को राष्ट्रपति का मंजूरी मिल जाने के बावजूद अभी तक लोकपाल का गठन नहीं हुआ है,इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय के पास मेरा सवाल का जवाब नहीं है,जिसके कारण सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग कर आवेदन को कथित तौर पर ज्यादा संबंधित विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया।
एक मैं और एक अवनीश कुमार,सिर्फ दो लोग ने RTI आवेदन भेजा इसलिए ऐसा किया गया।यदि दो सौ लोग प्रधानमंत्री कार्यालय को आवेदन भेजे तो दो महीना में लोकपाल का गठन हो जाए।
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AIIMS,Patna के निर्माणाधीन भवनों के निर्माण-कार्य पूरा होने में पटना हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भारी विलंब और सहायक प्राध्यापकों का कोटा के अनुरुप बहाली नहीं होने के विरुध्द मेरे द्वारा दायर की गई सूचना आवेदन को केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 की धारा 6(3) के तहत AIIMS,PATNA के निदेशक को जवाब देने के लिए हस्तांतरित कर दिया है।ये सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग है क्योंकि AIIMS,PATNA के निदेशक से ज्यादा जवाबदेही इन मामलों को लेकरमंत्रालय की है।इससे पूर्व मंत्रालय ने मेरा सूचना आवेदन को यह कहकर वापस कर दिया था कि पोस्टल आर्डर को Accounts 0fficer के नाम भेजने के बजाय सचिव के नाम भेजा गया,जिसके कारण मंत्रालय के विरुध्द मैंने केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत किया है जिसमें अधिनियम की धारा 25(5) के तहत आयोग से ये सिफारिश करने का आग्रह किया गया है कि पोस्टल आर्डर/ड्राफ्ट किसी खास अधिकारी के नाम नहीं भेजने के कारण आवेदन को वापस नहीं किया जाए।
दिनांक 17/12/2014 को AIIMS,PATNA के तीन मेडिकल छात्रों द्वारा भी इस मामले को लेकर केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सूचना आवेदन भेजा गया है।
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जिला अभिलेखागार, दरभंगा से चिरकुट दाखिल कर कोई न्यायिक या जमीन संबंधित दस्तावेज की छायाप्रति निकालने के लिए 500-1000 रुपये घूस देनी पड़ती है।एक व्यक्ति को खेसरा पंजी की जरुरत थी जिसके लिए मैंने RTI आवेदन भेजवाया।जवाब में बताया गया कि बिहार अभिलेख हस्तक,1960 का अध्याय 8 का नियम 273 से 279 के आलोक में सिर्फ चिरकुट दाखिल करने पर ही दस्तावेज प्रदान किया जा सकता है।लेकिन बिहार अभिलेख हस्तक,1960 और सूचना का अधिकार कानून में कहीं भी ये नहीं लिखा है कि अभिलेखागार का दस्तावेज सूचना का अधिकार कानून के दायरे में नहीं आता।हालांकि एक अन्य आवेदन के जवाब में अभिलेखागार के वरीय उप समाहर्ता ने खुद को लोक सूचना अधिकारी बताया है।इस अधिकारी को एक पत्र भेजकर सूचना देने कहा गया है जिसमें बताया गया है कि अभिलेखागार सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आता है।इस अधिकारी द्वारा फिर भी दस्तावेज प्रदान नहीं करने पर इनके विरुध्द प्रथम अपील दायर करना पड़ेगा।
जिला अभिलेखागार से रोजाना सैकड़ों लोग सैकड़ों रुपये घूस देकर दस्तावेज निकालते हैं।इन्हें लगता है कि RTI से दस्तावेज देने पर लोग चिरकुट दाखिल करना बंद कर देंगे।
एक बार वर्ष 2013 में अनुमंडलाधिकारी,दलसिंहसराय द्वारा सूचना का अधिकार के तहत दस्तावेज देने से मना करते हुए चिरकुट दाखिल कर दस्तावेज प्राप्त करने कहा गया।मैंने एक पत्र भेजकर कहा कि उन्हें सूचना का अधिकार के तहत दस्तावेज देना पड़ेगा जिसके बाद सूचना का अधिकार के तहत दस्तावेज दिया गया।
एक वकील ने एक व्यक्ति को कहा कि सूचना का अधिकार के तहत न्यायिक दस्तावेज प्रदान नहीं की जाती।मैंने उस व्यक्ति को सूचना का अधिकार का जानकारी दिया।लेकिन एक वकील द्वारा ये बोलना दिखाता है कि अभिलेखागार,सिविल कोर्ट का प्रतिलिपि विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों का कोर्ट ने अफवाह फैला दिया है कि उनके पास मौजूद दस्तावेज सूचना का अधिकार के दायरे में नहीं आता।
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