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Anti-Male Laws In India

VISION FOR ALL
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प्रेम-संबंध में यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए लड़के-लड़कियों का भाग जाना और फिर लड़की के अभिभावक द्वारा अपहरण का केस दर्ज करवाना आम बात हो गया है।सरकार या सुप्रीम कोर्ट को ये दिशानिर्देश जारी करना चाहिए कि जब लड़की के अभिभावक(नाबालिग लड़की को छोड़कर जिसमें अपहरण का मुकदमा दायर करने के लिए आयु प्रमाण पत्र अनिवार्य होगी) द्वारा लड़का के विरुध्द अपहरण का मुकदमा दायर किया जाता है तो पुलिस और कोर्ट अपहरण का मुकदमा दायर नहीं करेगी,बल्कि लड़की के बरामदगी हेतु रिपोर्ट दायर करेगी और लड़की के बरामदगी के पश्चात लड़की का मनोवैज्ञानिक का एक टीम द्वारा परीक्षण किया जाएगा और लड़की के यौन-इच्छा की DNA जांच की जाएगी और फिर निष्कर्ष निकालने के बाद यदि प्रतीत होता है कि लड़की का अपहरण,बलात्कार आदि हुआ है तभी आपराधिक मुकदमा दायर की जाएगी।लड़की का मनोवैज्ञानिक और DNA परीक्षण में यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए भागने वाला तथ्य उजागर होने पर आपराधिक मुकदमा दायर नहीं किया जाएगा।लड़की के बरामदगी के पश्चात लड़की के अभिभावक और समाज के गंदे लोग द्वारा लड़की पर दवाब डालकर अपहरण और बलात्कार का बयान उससे दिलवा कर कानून का दुरुपयोग किया जाता है जिसे रोकने के लिए उपरोक्त उपाय अपनाना ही पड़ेगा।

बरामदगी के बाद जब लड़की पुलिस और CrPC का धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष अपहरण,बलात्कार आदि का आरोप लगाती है तो उस अवस्था में ही लड़की का
मनोवैज्ञानिक और DNA परीक्षण किया जाएगा जिसमें यदि पता चलता है कि लड़की यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए भागी थी तो उसके द्वारा लगाए गए आरोप को खारिज कर दिया जाएगा।लड़की बरामदगी के बाद पुलिस के समक्ष ऐसा कोई बयान नहीं देती है तो मजिस्ट्रेट के समक्ष लड़की का धारा 164 के तहत बयान होने तक लड़की पुलिस हिरासत में रहेगी और मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसा कोई आरोप नहीं लगाए जाने के बाद मजिस्ट्रेट के पास आरोप को संज्ञान लेकर आरोप को खारिज करने का शक्ति होगा।कई केस में देखा जाता है कि लड़की द्वारा लड़का पर आरोप नहीं लगाए जाने के बावजूद लड़का को हिरासत में भेज दिया जाता है या/और मुकदमा चलते रहता है।इसलिए लड़की का धारा 164 का बयान के साथ ही आरोप खारिज कर देना चाहिए और यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि लड़की किसी दवाब में लड़का का बचाव कर रही है तो उस अवस्था में लड़की का मनोवैज्ञानिक और DNA परीक्षण मजिस्ट्रेट द्वारा कराया जाना चाहिए और परीक्षण में यौन-इच्छा की पूर्ति के लिए भागने की पुष्टि होने पर आरोप को लड़की के बयान और परीक्षण के आलोक में खारिज कर देना चाहिए।

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कानून का एकपक्षीय होना महिला और महिला का इस्तेमाल करने वाले थर्ड पर्सन को कानून का दुरुपयोग करने के लिए खुली छूट देती है।वर्ष 2013 में जोड़े गए IPC का नया धारा 354D(STALKING) के तहत महिला द्वारा मना करने के बावजूद बार बार उसे कॉल करना या मैसेज करना अपराध है,जिसके तहत पहली बार 3 साल और दूसरी व अगली बार 5 साल तक की सजा हो सकती है।लेकिन पुरुष द्वारा मना करने के बावजूद महिला बार बार कॉल करे,मैसेज करे तो कोई सजा नहीं है।मुझे एक लड़की कुछ दिन पहले तक अनावश्यक रुप से कॉल और मैसेज कभी कभी कर देती थी।हालांकि मैंने मना किया तो उसने बंद कर दिया।लेकिन यदि बंद नहीं किया होता तो शिकायत दर्ज करने के लिए मेरे पक्ष में कोई कानून नहीं है।नाबालिग लड़के को मजबूर कर महिला द्वारा शारीरिक संबंध बनाया जाना बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम,2012 की धारा 4 और 6 के तहत यौन अपराध माना गया है जिसके लिए उम्रकैद तक की सजा है और महिला द्वारा निजी अंग को छूने के लिए मजबूर करना भी इस अधिनियम की धारा 8 और 10 के तहत अपराध है।लेकिन यदि महिला किसी बालिग पुरुष को ऐसा कोई भी कृत्य करने के लिए मजबूर करे तो महिला के विरुध्द कोई सजा का प्रावधान नहीं है।

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