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A Bribe to God

VISION FOR ALL
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लोगों ने देवी-देवताओं के मूर्ति पर पैसे और विविध सामाग्रियों को चढ़ाने का परंपरा बना लिया है।मानो कि पैसा या सामग्री के बल पर देवी-देवताओं को अपने फायदा के लिए खरीद रहा हो।मानो कि अपना काम निकालने के लिए देवी-देवता को घूस दे रहा हो। हम अपना काम निकालने के लिए किसी व्यक्ति को पैसा या कोई उपहार मतलब घूस देते हैं और अपना काम निकालने के लिए देवी-देवताओं पर भी पैसा और विविध सामाग्री चढ़ाते हैं,इसलिए बात तो बराबर ही है।
यदि हम चाहते हैं कि भ्रष्टाचार रुके और हरेक व्यक्ति धर्म-सम्मत तरीके से धर्नाजन करे तो हमें देवी-देवता पर होने वाले चढ़ावा को भी रोकना होगा।क्योंकि जब कोई व्यक्ति अपना काम निकालने के लिए अपना भगवान को पैसा और सामाग्री दे सकता है तो वह व्यक्ति अपना काम निकालने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को पैसा और उपहार मतलब घूस देने में संकोच नहीं करेगा और घूस लेने में भी नहीं।
पूजा आत्मिक शक्तियों का सृजन के लिए की जानी चाहिए(जहाँ चढ़ावा चढ़ाने की जरुरत नहीं होती),कोई मन्नत पूरा करवाने के लिए नहीं।जब आत्मिक शक्तियों का सृजन हो जाएगा तो मनुष्य कर्मयोगी बन जाएगा और अपने कर्म के बलबूते अपने मन्नत को पूरा कर लेगा।

I have said this act as bribe to god on two points- 1.People offers god money and materials and same is offered in bribe. 2.There is some motive behind offering bribe that a person offering bribe wants to fulfill his desire. There is one more point that should be included- 3.Without doing work,people offering money and materials wants to get result by the bless of god and same is in the case of bribe that people wants to get a certain result or wants a certain work done without having potency and eligibility for that result or work. Then,there must not be any objection in saying this act bribe to god. No matter god never demands it or accepts it.The matter is that we are offering it with a certain motive to quench the desire without doing work and as per this mindset of people,this act can be called as bribe to god.

There might be an exceptional case and merely few people can be expectional because they are self-satisfied in such a way that they offer things to god by understanding things valueless.But it is an exceptional case and if we talk about something in a generalized form of mentality,attitude or mindset,we talk about most of the people and bribe to god is applied against most of the people,not in exceptional case.
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पौराणिक पंडितों का राम के विरुध्द साजिश
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ये कहानी सरासर असत्य है कि राम ने सीता को महज इसलिए देश-निकाला दे दिया क्योंकि नगरवासी को शक था कि लंका में सीता अपवित्र हो गई।जब नकली सीता लंका गई थी तो फिर असली सीता अपवित्र हुई कैसे?बाल्मीकि रामायण के साथ छेड़खानी करके पौराणिक पंडितों द्वारा इस कहानी को जोड़ा गया है।वस्तुतः सीता गर्भवती होने के पश्चात संतानोत्पति के लिए वन गई थी क्योंकि वैदिक संस्कार-विधि में ऐसी मान्यता है कि गर्भवती महिला को वन में रहने से संस्कारी संतान उत्पन्न होता है।जब गौतम बुध्द गर्भ में थे तो उनकी माँ भी लुम्बिनी वन संतानोत्पति के लिए गई थी।अभी हम जिस बाल्मीकि रामायण को पढ़ते हैं,वो पौराणिक है जिसमें कई मनगढ़ंत कहानियाँ पुराणपंथियों ने जोड़ दिया है।आप रामायण का वैदिक संस्करण पढ़े जो मूल बाल्मीकि रामायण है जिसमें स्पष्ट है कि संतानोत्पति के लिए सीता वन गई थी।पौराणिक पंडितों ने अत्याचार से पीड़ित महिला को भी अपवित्र करार देने के लिए कहानी के साथ छेड़छाड़ कर दिया ताकि लोग ये सोचकर सीता जैसी परिस्थिति या उससे भी बुरी परिस्थिति से गुजरने वाली महिला को गलत समझे क्योंकि राम भी गलत समझते थे।

सीता संतानोत्पति के पश्चात राम के पास लौटी या नहीं, इसके बारे में वैदिक रामायण में क्या लिखा है मुझे नहीँ पता क्योंकि वैदिक रामायण का अध्ययन करने वाले व्यक्ति से चर्चा के दौरान वैदिक रामायण का ये तथ्य उनके मुख से मैंने सुना।उन्होंने और भी कई कहानियाँ बताई जो कि पौराणिक रामायण में मनगढ़ंत है।हालांकि यदि वैदिक रामायण में भी सीता वापस नहीं लौटी तो इसका कारण ये भी हो सकता है कि वह अपने पुत्र का शिक्षा महर्षि बाल्मीकि के सान्निध्य में संपन्न कराना चाहती हो और सीता ने अपने पुत्र के शिक्षा के लिए वन में ही रहना उचित समझा हो।जीवन के पच्चीस साल का समय ब्रह्मचर्य आश्रम का होता था जिसमें वन में रहकर शिक्षा ग्रहण करना पड़ता था।लोग शिक्षा ग्रहण करने घर से वन जाते थे तो फिर सीता जब पुत्र के साथ वन में थी ही तो वन से घर क्यों आए।विशुध्द ब्रह्मचर्य आश्रम यही होता कि लव-कुश अपने बचपन का समय वन में गुजार कर शिक्षा ग्रहण करे।चूँकि लव-कुश काफी छोटे थे,इसलिए सीता उसे छोड़ कर नहीं जा सकती थी।

नकली सीता की कहानी पौराणिक रामायण में है जिसमें कहा गया है कि असली सीता अग्निदेव के संरक्षण में थी और नकली सीता को बनाया गया जो लंका गई।फिर यहाँ ये सवाल खड़ा होता है कि जब असली सीता लंका गई ही नहीं और लंका में सभी के समक्ष अग्निदेव ने असली सीता को राम को सुपुर्द किया था,फिर राम सीता पर कैसे शक कर सकते हैं?राम अपने राज्यवासी का शक ये कहकर भी दूर कर सकते थे कि नकली सीता लंका गई थी और अग्निदेव को बुलवा कर इसकी पुष्टि करवा सकते थे।वैदिक रामायण में ऐसी कोई कहानी नहीं है।सवाल ये भी खड़ा होता है कि जब नकली सीता लंका गई थी तो राम को पहले से ज्ञात था कि असली सीता सुरक्षित है और ये भी ज्ञात था कि नकली सीता लंका गई है,फिर राम सीता हरण के बाद सीता को खोजने के पीछे इतना परेशान क्यों थे?सारी पौराणिक कहानी फर्जी है।मैं वैदिक और पौराणिक दोनों रामायण का पूरी तरह अध्ययन करने के बाद पौराणिक रामायण के विरुध्द मुकदमा दायर करुँगा क्योंकि पौराणिक रामायण में लिखित विरोधाभासी कथन और तथ्य से स्पष्ट है कि पौराणिक रामायण की कहानियाँ मनगढ़ंत है और वैदिक रामायण में स्थिर बयान और तथ्य होने से स्पष्ट है कि ये मूल बाल्मीकि रामायण है।
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सवाल ये खड़ा किया गया है कि इसका क्या प्रमाण है कि गीता में बाद में कई श्लोक जोड़ा गया है और मूल 108 श्लोक ही गीता में मौजूद थी,अभी का 700 श्लोक नहीं था।भले ही इसका प्रत्यक्ष या दस्तावेजी प्रमाण नहीं है,लेकिन तार्किक प्रमाण जरुर है।
1.अर्जुन को रणभूमि में कृष्ण धर्म की रक्षा के लिए युध्द करने के लिए संदेश दे रहे थे और कर्म,ज्ञान और भक्ति का उस वक्त वहीं संदेश दिया जा सकता है जो रणभूमि में दुविधाग्रस्त अर्जुन को युध्द के लिए जागृत कर सके।फिर अधर्म के बढ़ जाने से स्त्री दूषित हो जाती है,बगैर अन्नदान और दक्षिणा का यज्ञ तामस यज्ञ होता है,सात्विक,राजस और तामस भोजन,कृष्ण का विराट और चमत्कारी रुप से जुड़ा श्लोक कहाँ से आ गई जो मौजूद तथ्य और परिस्थिति के अनुसार प्रासंगिक है ही नहीं।
2.कृष्ण ने रण भूमि में गीता संदेश कितने देर के लिए दिया था?क्या उतने कम समय में 700 श्लोक बोला जा सकता है?उतने कम समय में कोई मुझे 700 श्लोक बोलकर और समझाकर दिखाए।
मैं गीता के कुल 700 श्लोक पर टिप्पणी करुँगा और ये निष्कर्ष निकालूँगा कि कौन कौन श्लोक गीता का मूल श्लोक हो सकता है और कौन कौन श्लोक गीता में पौराणिक पंडितों ने जोड़ दिया है।

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Chanting hymns without understanding its meaning is a slave mentality because a person is a person of slave mentality till the time when he attains his independent way of thinking and developes an independent understanding.
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