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साँप भी ना मरे,लाठी भी ना टूटे।

VISION FOR ALL
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As posted on 24 Aug 2014…
मारवाड़ी
कॉलेज,दरभंगा का मनोविज्ञान विभाग का एक सरकारी प्रोफेसर द्वारा अपने मकान
के किरायेदारों के साथ की जा रही गुंडागर्दी को जानकर मुझे काफी आश्चर्य
हुआ।उस मकान में रहने वाला एक किरायेदार कल मुझसे FIR करने के लिए राय और
सहयोग लेने आया जिसने बताया कि मकान मालिक, उसका पत्नी और बेटा छात्रों से
सब्जी, दूध, आटा आदि बाजार से मंगवाता है। मना करने पर गाली देता है और थप्पड़
से मारता है।अभिभावक को मकान के अंदर आने नहीं देता है।जो छात्र मिलने
आए,उन्हें कल मकान मालिक ने 3-4 थप्पड़ मारा था और उसका बेटा ने भी 1-2
थप्पड़ मारा था।एक सप्ताह पहले एक छात्र के पिता के सामने मकान मालिक के
बेटा ने उस छात्र को पीटा,जिससे वह छात्र उस मकान को छोड़कर चला गया।जिसे कल
मार लगी वह FIR करना चाहता था।पहले तो ये बोला कि 3-4 थप्पड़ के जगह 10
थप्पड़ का आरोप लगा देंगे,जिससे मैंने मना किया।फिर मकान के कुछ लड़के से
विचार करने के बाद ये योजना बनाया कि सारे पीड़ित लड़का मकान खाली कर मकान
मालिक को कॉलेज के रास्ते में घेरकर पिटेंगे,जिससे भी मैंने मना किया।ना ही
आपको बढ़ाकर 10 थप्पड़ का आरोप लगाने से न्याय मिल सकती,ना ही घेरकर पिटने
से न्याय मिल सकती।

मैंने एक सुझाव दिया था कि यदि मुकदमा लड़ने में सक्षम
नहीं हो तो सभी मिलकर उस मकान को खाली करो।यदि सभी मिलकर मकान को खाली
करोगे तो मकान मालिक को कम से कम ये एहसास जरुर हो जाएगा कि किरायेदार उसका
गुलाम नहीं है।लगभग आठ पीड़ित छात्र उस मकान को खाली करने के लिए नए जगह
कमरा खोज रहे हैं।

……………………….

इसे
अन्यथा ना ले।

मुझे लगता है कि श्रीकृष्ण के विरुध्द IPC के निम्न धाराओं के तहत मामला
बनता लेकिन IPC के तहत ही कोई सजा नहीं होती।

मक्खन चोरी करना-380

मक्खन छीन लेना-379

वर्तन फोड़ देना-427

गोपियों का वस्त्र हरण करना-354B

कई शादी करना-494

जहाँ तक कंस जैसे पापियों का वध का सवाल है तो आज भी सेना और पुलिस के पास
आतंकवादी और क्रिमिनल को मारने का अधिकार है,इसलिए धारा 302 का मामला नहीं
बनता।

कृष्ण के द्वारा मक्खन चुराने,मक्खन छीनने,वर्तन फोड़ने की घटना शायद उस
वक्त तक ही की गई जब वह 12 वर्ष से नीचे थे और IPC का धारा 83 के मुताबिक
जो अपराध 12 वर्ष तक के बच्चे द्वारा किया गया जाता है,वह अपराध नहीं माना
जाता है।

गोपी वस्त्र हरण और कई शादी को देखा जाए तो किसी गोपी और किसी पत्नी को कोई
HARM नहीं हुई।सारी गोपियाँ वस्त्र हरण के बावजूद आनंद की अनुभूति कर रही
थी।कई पत्नियाँ होने के बावजूद सभी पत्नियाँ आनंद की अनुभूति कर रही थी।IPC
का धारा 95 के मुताबिक ऐसे किसी भी कृत्य को अपराध नहीं माना जाता जिससे
कोई HARM नहीं हुआ हो या SLIGHT HARM हुआ हो।

यदि कृष्ण 12 वर्ष से ज्यादा का भी रहा हो,फिर भी मक्खन चुराने,छीनने और बर्तन फोड़ने की घटना को SLIGHT HARM ही माना जाएगा,जो अपराध नहीं होता।

अतः ये स्पष्ट है कि IPC के धाराओं के तहत ही श्रीकृष्ण अपराधमुक्त हैं।

……………………..
साँप
भी ना मरे,लाठी भी ना टूटे।कुछ ऐसा ही कारनामा किया है अनुमंडल पुलिस
पदाधिकारी,रोसड़ा ने।

एक
दलित महिला मुखिया का भ्रष्टाचार के विरुध्द जिलाधिकारी व अन्य को शिकायत
किए जाने के बाद दलित महिला होने का फायदा उठाकर मुखिया ने शिकायत करने
वाले मध्य विद्यालय के एक सेवानिवृत प्रधानाध्यापक व एक अन्य के विरुध्द
असत्य मुकदमा दायर करवा दिया था।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,रोसड़ा ने कांड का
पर्यवेक्षण करके मुकदमा को असत्य करार दे दिया।लेकिन अनुमंडल पुलिस
पदाधिकारी का शातिर दिमाग देखिए कि मामला को इस रुप में असत्य करार दिया
ताकि मुखिया के विरुध्द फर्जी फंसाने का मुकदमा ना चले।प्राथमिकी का
सूचक,प्राथमिकी में नामित कुछ गवाहों और घटनास्थल पर उपस्थित अन्य लोगों ने
आरोप को अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के समक्ष असत्य बताया लेकिन अनुमंडल
पुलिस पदाधिकारी ने आरोप को असत्य करार देने के लिए घटनास्थल पर उन गवाहों
को दिखा कर उनका फर्जी बयान दर्ज कर लिया जो घटनास्थल पर थे भी नहीं।जब
मैंने पर्यवेक्षण टिप्प्णी को पढ़ा तो समझ में आ गया कि मुखिया के विरुध्द
झूठा फंसाने का मुकदमा ना चले,इसलिए जांच अधिकारी ने ऐसा किया है।जो
निर्दोष अभियुक्त मुखिया के विरुध्द झूठा फंसाने के लिए मुकदमा करने का
उम्मीद किए बैठे थे,उनकी उम्मीद पर पानी फिर गई।

चूँकि अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने मामला को असत्य करार दे दिया है,इसलिए
मुखिया के विरुध्द फर्जी फंसाने का मुकदमा चलाया जा सकता है,हालांकि इसकी संभावना है कि जांच अधिकारी द्वारा तैयार किए गए फर्जी गवाह जिन्होंने उनके समक्ष वैसा बोला भी नहीं था बदल जाए, लेकिन मैं
असत्य की बुनियाद पर कुछ भी नहीं कर या करवा सकता,इसलिए निर्दोष अभियुक्त
को मना कर दिया।सर्वप्रथम अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के विरुध्द मुकदमा होना
चाहिए,लेकिन ऐसा करने पर निर्दोष अभियुक्त को ना जाने कितने फर्जी मुकदमा
में फंसा दिया जाता।इसलिए मामला को यथावत छोड़ देना ही बेहतर था।

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