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शिक्षा माफिया ने बलात्कार का झूठा आरोप मेँ फंसवाया

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मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी,पटना के न्यायालय मेँ दायर करवायी गई परिवाद
संख्या 2576(C) of 2013,दिनांक 25/7/2013,IPC की धारा 328,376,379 की
समीक्षा


…………………………………………..


1.मोना कुमारी ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी,पटना को परीक्षण के दौरान
दिए बयान के पारा 3 मेँ नागेश्वर झा पर आरोप लगाया है कि “दिनांक
21/07/13 को आठ बजे रात मेँ लगभग वो (नागेश्वर झा) मेरे चकराम (पटना का
बुध्दा कॉलोनी मेँ एक जगह) स्थित घर पर आया।मैँ उस समय घर पर अकेली थी।वो
बोले कि कल शिक्षा मंत्री से मिलना है।(सरकारी नौकरी दिलाने की) बातचीत
हो चुकी है।मैँने उसे खाना पीना दिया।वो बाहर से COLD DRINK लाकर
दिया।मैँ भी पी ली।पीते ही मुझे चक्कर आने लगा,मैँ बेहोश हो गयी।एक-दो
बजे रात मेँ मुझे होश आया।मैँने अपने आपको बिस्तर पर नंगा पड़ा
देखा।मैँने महसूस किया कि उसने मेरे साथ बलात्कार किया है।”
अरविंद कुमार मोना कुमारी का एक गवाह है जिसने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी
को दिए बयान के पारा 4 मेँ कहा है कि मुझे 22 तारीख को (दिनांक
22/7/2013) को मोना कुमारी ने फोन कर सूचित किया।अरविंद ने मोना कुमारी
द्वारा उसे फोन पर दिए गए सूचना के आधार पर अपने बयान के पारा 3 मेँ कहा
है कि दूसरे दिन सुबह मोना कुमारी अपने को नंगी हालत मेँ पाई।कथित वारदात
21 जुलाई की रात हुई और मोना कुमारी ने वारदात की जानकारी 22 जुलाई को
अरविँद को दी।मतलब,भारतीय साक्ष्य कानून,1872 के तहत अरविंद एक
परिस्थितिजन्य साक्ष्य है।जिस मोना कुमारी ने अरविँद को कहा कि वह दूसरे
दिन सुबह नंगी अवस्था मेँ पाई गई,वहीँ मोना कुमारी ने मुख्य न्यायिक
दंडाधिकारी के समक्ष कहा कि 1-2 बजे रात मेँ नंगी पाई गई।मोना कुमारी ने
22 जुलाई को अरविँद को कहा और 26 जुलाई को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के
समक्ष कहा।मोना कुमारी द्वारा पूर्व मेँ अरविँद को दी गई सूचना और बाद
मेँ मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी को दी गई सूचना मेँ भिन्नता है।मतलब मोना
कुमारी का बयान विरोधाभासी है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 155(3)
के तहत मोना कुमारी के विरुध्द एक सबूत है,जिस आधार पर मोना कुमारी के
आरोप को झूठा करार देकर खारिज किया जाना चाहिए।

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष दायर करवायी गई परिवाद पत्र के पारा 4
मेँ मोना कुमारी ने कहा है कि “the accused brought one cold drink from
the market and offered it to drink to the complainant.”वहीँ मोना
कुमारी परीक्षण के समय दिए बयान के पारा 3 में कहा है कि मैं भी पी
ली।मतलब नागेश्वर झा ने भी पीया।जब Cold Drink मात्र एक था और दोनों ने
पीया तो फिर सिर्फ मोना कुमारी ही बेहोश क्यों हुई?अरविंद कुमार ने अपने
बयान के पारा 3 में मोना के द्वारा अगले दिन दी गई सूचना के आधार पर कहा
है कि दोनोँ लोग अलग-अलग बोतल से कोल्ड ड्रीँक पीए।मोना द्वारा दायर की
गई परिवाद पत्र के अनुसार एक बोतल था और अरविंद को दी गई सूचना के अनुसार
दो बोतल था।मोना के द्वारा दो अलग अलग सूचना दिया गया है,जिसे भारतीय
साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 155(3) के तहत मोना के बयान को विरोधाभासी
बयान मानते हुए मोना के आरोप को खारिज कर देना चाहिए।
यदि पहली वाली स्थिति को माना जाए जिसके तहत दोनोँ ने एक ही बोतल से ही
कोल्ड ड्रिंक पीया या दूसरी वाला स्थिति को माना जाए जिसके तहत दोनोँ ने
अलग अलग बोतल से कोल्ड ड्रींक पीया जिसमें मोना ने दो विराधाभासी बयान
दिया है,दोनों स्थितियों में मोना का आरोप झूठा है।


2.मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष दायर
परिवाद पत्र मेँ 75,000 रुपये का सोना और चाँदी नागेश्वर झा द्वारा मोना
कुमारी के अटैची से निकाल कर भाग जाने का आरोप लगाया गया है।लेकिन परीक्षण
के दौरान मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष दिए बयान मेँ मोना कुमारी ने
जेवर गायब होने का उल्लेख नहीँ किया है।इससे जाहिर होता है कि जेवर गायब
करने का आरोप झूठा है।ना ही मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष दायर की गई
परिवाद पत्र मेँ इसका उल्लेख है, ना ही अरविँद और एक अन्य गवाह रविशंकर
कुमार के बयान मेँ उल्लेखित है कि सोना कितने ग्राम और कितने रुपये का
गायब हुआ और चाँदी कितने ग्राम तथा कितने रुपये का गायब हुआ।यदि वास्तव मेँ
जेवर गायब हुआ होता तो इसका भी उल्लेख होता कि सोना कितने ग्राम और
कितने रुपये का गायब हुआ और चाँदी कितने ग्राम तथा कितने रुपये का गायब
हुआ।



3.गवाह रविशंकर कुमार ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी को दिए बयान के पारा 2
मेँ कहा है कि ये सारी बात मुझे सुनीता झा,प्राचार्या ने बताया।रविशंकर
महज एक HEARSAY EVIDENCE है जिसने किसी से ये सब सुना।भारतीय साक्ष्य
अधिनियम की धारा 60 के तहत HEARSAY EVIDENCE को सबूत के रुप मेँ ADMIT
नहीँ किया जा सकता,इसलिए रविशंकर की गवाही की मान्यता नहीँ हो सकती।


4.आरोप लगाया गया है कि नागेश्वर झा मोना कुमारी को कहा करते थे कि वह
उसे सरकारी कॉलेज मेँ नौकरी दिलवा देँगे।कथित वारदात के दिन भी यहीँ कहने
आए थे कि नौकरी दिलवाने के लिए शिक्षा मंत्री से बात हो चुकी है,जिसके
लिए उसे अगले दिन शिक्षा मंत्री के पास चलना पड़ेगा।मोना कुमारी को यकीन
हो गया कि अगले दिन शिक्षा मंत्री से मिलकर सरकारी नौकरी मिल
जाएगी,इसलिए मोना कुमारी ने नागेश्वर झा को खाना खिलाया,उनके द्वारा COLD
DRINK देने पर पी लिया।सर्वप्रथम मोना कुमारी एक पढ़ी लिखी महिला है जो
UVK INTER COLLEGE,उदाकिशुनगंज ,मधेपुरा का ACCOUNTANT है।ऐसी महिला इस
झासा मेँ कैसे आ सकती है?वो भी बगैर घूस का सिर्फ शिक्षा मंत्री से मिलकर
ही सरकारी नौकरी कैसे मिल सकता है?किसी को सरकार नौकरी देने का अधिकार
शिक्षा मंत्री को नहीँ है।सरकारी नौकरी मेरिट और परीक्षा के आधार पर होती
है,शिक्षा मंत्री से मिलने के आधार पर नहीँ।नागेश्वर झा भी UVK
कॉलेज,कड़ामा का व्याख्याता हैँ।ये भी एक निजी कॉलेज का कर्मचारी
हैँ,फिर जब ये शिक्षा मंत्री से मिलकर दूसरे को सरकारी नौकरी दिलवा सकते
हैँ तो खुद भी सरकारी नौकरी ले लेना चाहिए था।जो व्यक्ति खुद को सरकारी
नौकरी नहीँ दिलवा सकता है,वह दूसरे को क्या दिलवाएगा?नागेश्वर झा को
अघोषित रुप से कॉलेज के व्याख्याता पद से हटा दिया गया है।जब इनका शिक्षा
मंत्री तक पहुँच होता तो फिर इन्हेँ नहीँ हटाया जाता लेकिन जब इन्होँने
अपने कॉलेज के प्रिँसिपल माधवेन्द्र झा के विरुध्द RTI से खुलासा किया
कि प्रिँसिपल फर्जी तरीके से परीक्षार्थियोँ का नामांकन करवाकर बिहार
बोर्ड के कर्मचारियोँ/अधिकारियोँ के साथ मिलीभगत करके बारहवीँ का बोर्ड
परीक्षा दिलवा रहा है (जिसमेँ माधवेन्द्र झा के विरुध्द गिरफ्तारी वारंट
भी जारी हुआ था) ,उसके बाद नागेश्वर झा को व्याख्याता के पद से हटा दिया
गया।


5.मोना कुमारी एक बार गर्ल थी जो पटना के एक होटल मेँ कार्य करती
थी।माधवेन्द्र झा,UVK कॉलेज का प्रिंसिपल इस बार गर्ल के पास जाया करता
था।माधवेन्द्र झा ने इसके साथ शारीरिक संबंध बनाया और माधवेन्द्र झा की
मोना से लगाव हो गई।माधवेन्द्र झा ने इसे अपने कॉलेज का ACCOUNTANT बना
दिया और फिर इसी का इस्तेमाल करके नागेश्वर झा को फंसा दिया।मोना कुमारी
का आरोप उसके कंडक्ट के कारण UNTRUTHFUL है।भारतीय साक्ष्य अधिनियम की
धारा 155(1) के तहत उसे UNTRUTHFUL ( UNWORTHY OF CREDIT) साबित करने
के लिए उसके विरुध्द स्वतंत्र गवाह पेश किया जाना चाहिए कि उसका
माधवेन्द्र झा से निजी संबंध होने के कारण माधवेन्द्र झा ने उसका
इस्तेमाल फंसाने के लिए किया है।


6.मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने अभी तक मोना कुमारी का मेडिकल परीक्षण
नहीं करवाया जबकि CrPC का धारा 164A और सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन्स के
तहत मेडिकल टेस्ट करवाना जरुरी है।वादी पक्ष या पीड़िता द्वारा मेडिकल
परीक्षण करवाने की मांग नहीं की गई।कथित पीड़िता के वकील स्वयं मेडिकल
टेस्ट करवाने की मांग करते यदि सही मेँ बलात्कार हुआ होता तो।क्योंकि
बगैर मेडिकल टेस्ट का अभियुक्त को सजा सुनाने पर कई सवाल उठेँगे,लेकिन
उसके बावजूद मेडीकल टेस्ट करवाने की मांग नहीँ की गई और ना ही न्यायालय
ने मेडीकल टेस्ट करवाया।ये जाहिर करता है कि आरोप झूठा है।
Cold Drink मेँ नशीला पदार्थ मिला देने की बात कही गई है,जिसके कारण वह
बेहोश हो गई और फिर बलात्कार किया गया।पीड़ित पक्ष को अपने पक्ष मेँ
सबूत दिखाने के लिए इसकी मांग करना चाहिए था कि मोना कुमारी का खून और
अन्य संबंधित जांच हो क्योंकि उसमेँ कोल्ड ड्रिँक के साथ नशीला पदार्थ
के सेवन का सबूत जरुर पाया जाएगा।लेकिन पीड़ित पक्ष के द्वारा खून और
अन्य संबंधित जांच करवाने की मांग नहीं की गई।न्यायालय ने भी इसकी
सत्यता के लिए खून व अन्य संबंधित जांच नहीँ करवाया।
अभियुक्त पक्ष के द्वारा मेडिकल टेस्ट और खून व संबंधित जांच आदि की
मांग नहीँ की जा सकी क्योँकि अभियुक्त मधेपुरा का रहने वाले हैँ और
उन्हेँ उनके विरुध्द की गई मुकदमा की जानकारी भी नहीँ थी।कोर्ट मेँ एक
पक्षीय सुनवाई चल रही थी।अभियुक्त के विरुध्द बुलावा के लिए समन जारी
किया गया लेकिन ये समन माधवेन्द्र झा ने पुलिस से मिलीभगत करके अभियुक्त
के घर पहुँचने ही नहीं दिया और नागेश्वर झा का फर्जी हस्ताक्षर करवाकर
समन न्यायालय मेँ जमा करवा दिया।इसके बाद जब न्यायालय मेँ पेश नहीँ हो
पाने के कारण गिरफ्तारी वारंट जारी कर दी गई,फिर अभियुक्त को जानकारी
मिली कि उनपर बलात्कार का मुकदमा हुआ है।खून व संबंधित जांच करवाना काफी
जरुरी था और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत विशेषज्ञ की राय
लेना भी एक सबूत है।विशेषज्ञ से इसकी राय नहीं ली गई कि मोना कुमारी
कोल्ड ड्रिँक के साथ नशीला पदार्थ का सेवन किया गया या नहीँ।भारतीय
साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत ही HANDWRITING EXPERT की राय लेना भी
एक सबूत है।समन पर किया गया हस्ताक्षर नागेश्वर झा का है या नहीँ,इसके
लिए HANDWRITING EXPERT का राय लिया जाए।


7.इस मुकदमा का एक भी चश्मदीद गवाह नहीं है।खुद कथित पीड़िता मोना कुमारी
भी चश्मदीद गवाह नहीँ है।आरोप के अनुसार,वह बेहोश हो गई थी और जब वह उठी
तो उसे महसूस हुआ कि उसके साथ बलात्कार हुआ है।ऐसी अवस्था मेँ जब स्वयं
पीड़िता भी चश्मदीद गवाह ना हो,सिर्फ किसी के महसूसीकरण के आधार पर
बलात्कार के विरुध्द कार्यवाही शुरु नहीं किया जा सकता।ऐसी अवस्था
में बलात्कार के विरुध्द कार्यवाही शुरु करने से पहले मेडिकल टेस्ट
कराकर ये जान लेना चाहिए कि ये मामला बलात्कार का हो सकता है या नहीँ।ऐसी
अवस्था के बावजूद ना ही पीड़ित पक्ष के द्वारा मेडीकल टेस्ट करवाने की
मांग की गई और ना ही न्यायालय ने करवाया।इन सारी बातों से पता चलता है कि
साजिशतन झूठा फंसाया गया है।

अरविंद कुमार ने अपने बयान के पारा 4 में कहा है कि मुझे 22 तारीख को मोना कुमारी ने फोन कर सूचित किया।कॉलेज के प्रिंसिपल को भी बताई।आरोप झूठा है,इसलिए ऐसा संयोग मिल भी सकता या नहीं भी मिल सकता हैं कि 22 जुलाई 2013 को कॉलेज के प्रिंसिपल माधवेन्द्र झा और अरविंद कुमार दोनों को फोन किया गया हो।यदि फोन नहीं किया गया तो अरविंद कुमार का बयान झूठा है और मोना कुमारी का भी,क्योंकि मोना कुमारी ने ही फोन पर दिए गए कथित सूचना के आधार पर अरविंद को गवाह बनाया गया है।यदि फोन किया गया है तो ये महज संयोग भी हो सकता है जिसमेँ कोई दूसरा बात किया गया हो।लेकिन CDR (CALL DETAIL RECORD) निकाला जाना चाहिए।भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत CALL DETAIL RECORD एक Secondary Evidence है जिसे धारा 65 के तहत सबूत के रुप में प्रस्तुत किया जा सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 4/8/2005 को State(NCT OF DELHI) VS NAVJOT SANDHU @ AFSAN GURU मेँ फैसला देते हुए जस्टिस P Ventatarama Reddi और जस्टिस P P Naolekar की खंडपीठ ने Call Detail Record  को  Admissible सबूत माना है।


9.उपरोक्त तथ्योँ और परिस्थितियोँ के आलोक मेँ कहा जा सकता है कि
बलात्कार (धारा 376),जेवर गायब करने (धारा 379) और नशीला पदार्थ देने
(धारा 328) का आरोप और पूरा मुकदमा ही झूठा है जो माधवेन्द्र झा के
द्वारा RTI से उसके विरुध्द खुलासा करने के कारण नागेश्वर झा के विरुध्द
करवाया गया है।

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