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एक फर्जी महंत और उसे बचाने वाला दारोगा
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बहेड़ी थाना काण्ड संख्या-237/13,धारा 406,420,467,468,471 IPC की समीक्षा
1.अभियुक्त राम चतुर यादव के विरुध्द अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,बेनीपुर के पर्यवेक्षण टिप्पणी दिनांक 22/9/2013 मेँ कहा गया है कि रामचतुर यादव ही फर्जी लक्ष्मण भगत है,जो लक्ष्मण भगत बनकर ग्राम पाड़ के मठ का फर्जी महंत बनकर मठ के जमीन को चार केवाला करके बेचा है।
2.कुल 104 ग्रामीणोँ ने अवर निरीक्षक (दारोगा),बहेड़ी को एक पब्लिक पेटीशन दिया जिसमेँ बताया गया है कि राम चतुर यादव ही फर्जी लक्ष्मण भगत है।
3.अवर निरीक्षक ने गिरफ्तार करने के बाद राम चतुर यादव को हिरासत मेँ लेने के लिए सीजेएम कोर्ट मेँ आवेदन दिया लेकिन आवेदन मेँ जान बूझकर ये नहीँ लिखा कि अभियुक्त राम चतुर यादव ही लक्ष्मण भगत है।जिसके कारण से अभियुक्त राम चतुर यादव ने खुद को लक्ष्मण भगत बताकर पुलिस हिरासत मेँ जाने से बच गया।
4.चारोँ केवाला पर ग्राम पाड़ का रामाश्रय यादव ही गवाह है,जिसका उस केवाला पर हस्ताक्षर है।ग्रामीणोँ के अनुसार पाड़ ग्राम मेँ सिर्फ एक रामाश्रय यादव है जो अनपढ़ है और अपना अंगूठा का निशान लगाता है।इसलिए रामाश्रय यादव को फर्जी गवाह के रुप मेँ इस्तेमाल किया गया है।
5.पुलिस ने या सीजेएम कोर्ट ने अभी तक उस हस्ताक्षर की जांच नहीँ करवाया कि वह हस्ताक्षर रामाश्रय यादव का है या नहीँ।भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 45 मेँ लिखा है कि लिखावट की जांच विशेषज्ञ से करवाया जाना चाहिए।भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 47 के अनुसार लिखावट के बारे मेँ राय देने वाले उससे परिचित लोगोँ का बयान एक सबूत होता है।रामाश्रय यादव के परिचित ग्रामीणोँ का कहना है कि वह अनपढ़ है जो अंगूठा का निशान लगाता है,जिसे सबूत माना जाना चाहिए।अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ने अपने पर्यवेक्षण टिप्पणी मेँ भी माना है कि रामाश्रय यादव अनपढ़ है जो अंगूठा का निशान लगाता है।
6.राम चतुर यादव उर्फ फर्जी लक्ष्मण भगत खुद को पूर्व महंत राम भगत का चेला बता रहा है और इसी आधार पर उसने जमीन बेचा है।यदि उसे पूर्व महंत का चेला मान लिया जाए,फिर भी उसे महंत नहीँ माना जा सकता क्योँकि महंत के चुनाव का एक परंपरागत प्रक्रिया है,जिसमेँ बिहार के सभी महंत मिलकर किसी मठ के लिए महंत को चुनते हैँ।यदि राम चतुर यादव को महंत मान लिया जाए,फिर भी उसे मठ की जमीन बेचने का अधिकार नहीँ था।मठ भी एक ट्रस्ट है और दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस विक्रमजीत सेन ने अशोक मेहरा की याचिका पर सुनवाई करते हुए वर्ष 2005 मेँ फैसला दिया है कि ट्रस्ट के जमीन को अदालत की अनुमति के बगैर नहीँ बेचा जा सकता।राम चतुर यादव उर्फ फर्जी लक्ष्मण भगत ने अदालत की अनुमति के बगैर मठ के जमीन को बेचा,जो गैर-कानूनी है।
7.राम चतुर यादव ने अपना नाम बदलकर लक्ष्मण भगत रखकर धोखाधड़ी किया।मेरी समझ से नाम बदलकर धोखाधड़ी करने के लिए IPC का धारा 419 के तहत भी मामला दर्ज होना चाहिए था,लेकिन पुलिस ने धारा 419 नहीँ लगाया है।
8.राम चतुर यादव ने अपने करीबी रिश्तेदार को जमीन बेचा है लेकिन वह खुद को लक्ष्मण भगत बता रहा है।मतलब,इसने जिसे जमीन बेचा है,वे लोग इसका रिश्तेदार नहीँ है।भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 45 के तहत राम चतुर यादव का DNA Test होना चाहिए और इसके DNA को इसने जिन-जिन को जमीन बेचा है,सभी से मिलाया जाना चाहिए।यदि DNA मिलता है तो जाहिर होगी कि ये आदमी कोई लक्ष्मण भगत नहीँ,राम चतुर यादव है।साथ मेँ,ये भी जाहिर होगा कि इसने अपने करीबी रिश्तेदार को जमीन बेचकर नाजायज फायदा पहुँचाया।फिर इसपर नाजायज फायदा पहुँचाने के लिए भी मुकदमा चल सकती है।
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