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1.जस्टिस श्रीमति अंजना प्रकाश,पटना हाईकोर्ट की न्यायाधीश जिन्होँने दिनांक 10 मार्च 2014 को गलत तथ्य दिखाकर बिहार के एक बड़े शिक्षा माफिया माधवेन्द्र झा और उसका भतीजा चन्द्रशेखर मिश्रा को अग्रिम जमानत दे दिया।बिहार बोर्ड ने सूचना का अधिकार आवेदन के जवाब में एक उच्च विद्यालय के बारे में बताया कि उस उच्च विद्यालय से कुल 129 परीक्षार्थियोँ ने बारहवीँ कक्षा का परीक्षा फार्म भरा है।जबकि उस उच्च विद्यालय के प्राचार्य ने बताया कि मात्र 32 परीक्षार्थियोँ ने परीक्षा फार्म भरा है।मतलब 97 परीक्षार्थियोँ का बिहार बोर्ड के कर्मचारियोँ,अधिकारियोँ के साथ मिलीभगत करके फर्जी तरीके से उस उच्च विद्यालय से कथित नामांकन दिखाकर परीक्षा दिलाया गया था।माधवेन्द्र झा उदाकिशुनगंज,मधेपुरा का यूभीके कॉलेज का प्राचार्य है जो इस मामले का आरोपी है कि उसने ही ये सब अपने भतीजा के साथ मिलकर करवाया है।इन दोनोँ के खिलाफ कुछ गवाह भी हैँ।जस्टिस अंजना प्रकाश ने अपने अग्रिम जमानत आदेश में कहा है कि आरोप का मुख्य कारण कॉलेज की स्वामित्व को लेकर दो गुट के बीच का विवाद है।
नागेश्वर झा,जिन्होँने RTI लगाकर मामले का खुलासा किया और FIR दर्ज करवायी, ने मुझे बताया कि ऐसी कोई विवाद दो गुट के बीच नहीँ है।अंजना प्रकाश ने ये दिखाने का कोशिश किया कि दो गुट के बीच कॉलेज की स्वामित्व को लेकर विवाद के कारण माधवेन्द्र झा और चन्द्रशेखर मिश्रा पर आरोप लगाया गया लेकिन वास्तव में ऐसी कोई विवाद है ही नहीँ।चाहे विवाद हो या ना हो,लेकिन RTI से जो खुलासा हुआ है और फिर माधवेन्द्र झा और चन्द्रशेखर मिश्रा के खिलाफ जो गवाह सामने आये हैँ,उसे झूठलाया नहीं जा सकता।इसलिए विवाद के आधार पर जमानत देना असंवैधानिक है।माधवेन्द्र झा का शिक्षा माफिया के रुप में कई आपराधिक रिकार्ड रहा है और ये दर्शाता है कि माधवेन्द्र झा ही इन फर्जीवाड़ा को अंजाम देता है।मधेपुरा SP ने माधवेन्द्र झा और चन्द्रशेखर मिश्रा के खिलाफ गिरफ्तारी आदेश जारी किया था,फिर सेशन कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दिया लेकिन उसकी गिरफ्तारी नहीँ हुई।फिर हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका मंजूर कर ली।मेरे पास इस केस का सभी संबंधित दस्तावेज है और यदि मैं समर्थ होता तो जस्टिस अंजना प्रकाश के विरुध्द अपने पद का दुरुपयोग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मुकदमा दर्ज करा देता।
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2. मधेपुरा का SP आनंद कुमार सिंह,जिन्होंने डकैती का प्रयास करने के पाँच आरोपियों को रस्सी से बांध diya।अभी भी पुलिस द्वारा रस्सी बांधना,हथकड़ियाँ लगाना आम बात है जबकि
सुप्रीम कोर्ट ने हथकड़ी,बेड़ियाँ और रस्सी लगाना अनुच्छेद 21 के तहत जीने का मौलिक अधिकार और मानवाधिकार का हनन माना है।सुप्रीम कोर्ट ने सिटीजन फॉर डेमोक्रेसी बनाम असम सरकार,AIR 1996,SC 2193 में दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा है कि पुलिस या जेल अधिकारी बगैर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुमति के किसी नागरिक को हथकड़ी व बेड़ी में नहीं जकड़ सकते।किसी नागरिक को हिरासत में लेने से लेकर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने तक तभी हथकड़ी व बेड़ी में जकड़ा जा सकता है जब इस बात का पुख्ता सबूत हो कि जिसे हिरासत में लिया गया था,उसे हथकड़ी व बेड़ी में नहीं जकड़ने पर वह भाग जाता।हथकड़ी व बेड़ी लगाने के बाद पुलिस को ये सिध्द करना होगा कि पुलिस के पास हथकड़ी व बेड़ी लगाने के सिवाय दूसरा उपाय था ही नहीँ।इस फैसला में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जबरन किसी नागरिक को हथकड़ी व बेड़ी में जकड़ने वाले पुलिस और जेल अधिकारियों पर कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चलना चाहिए।
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