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XEROX COPY में अलग अलग लिखावट

VISION FOR ALL
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आखिर एक ही दस्तावेज के XEROX COPY में अलग अलग लिखावट कैसे हो सकती है?मानवाधिकार आयोग के समक्ष अनुमंडलाधिकारी के पास की गई 2011 वाली शिकायत का जो प्रतिलिपि भेजी गई वो फर्जी है।क्योंकि आज RTI से उसी शिकायत का जो XEROX COPY SDO से प्राप्त हुआ है उसमे काफी भिन्नता है।उसमें कुल 8 या 9 पाराग्राफ है,इसमें मात्र 5 है।उसमें आखिरी पेज पर आवेदिका ने साइन के साथ दिनांक भी डाला है लेकिन इसमें नहीं है।उसमें आखिरी पेज पर वकील ने अपना पूरा नाम लिखकर साइन नहीं किया है लेकिन इसमें किया है।उसमें पाँच या छ: पेज है,इसमें चार पेज ही है।उसमें लिखा है कि आवेदिका ‘विधवा नारी’ है,इसमे लिखा है कि आवेदिका ‘विधवा अवला नारी’ है।इसमें ‘समझाया’ और ‘नहीं छोड़ा’ के बीच का कुछ शब्द गायब है लेकिन उसमें मौजूद है।इसमें ‘और राहुल के पिता को भी बुलाया’ हाथ से लिखा गया है’लेकिन उसमें TYPING की हुई है।इसमें लिखा है कि ‘दो बार’ अप्राकृतिक व्यवहार किया,उसमें लिखा है कि ‘एक दो बार’ अप्राकृतिक व्यवहार किया।इसमें’ फोन किया कि वह’के आगे का शब्द गायब है लेकिन उसमें गायब नहीं है।इसमें पाँच के बाद वाली पारा को पारा 5 में ही डाल दिया गया है।

इसमें कई वाक्य ऐसा है जिसमें वही बात लिखी है लेकिन वाक्य की संरचना उससे भिन्न है।जो वाक्य उसमे पाँचवी पेज पर थी इसमें वो तिसरी और चौथी पेज पर है।इसमेँ जो शब्द पेज के बायीं ओर से सबसे किनारा में आता है,वह सारा शब्द कटा हुआ है लेकिन उसमें किनारा वाला एक भी शब्द कटा हुआ नहीं है।इसमें सारे शब्दों का पेज पर उस शब्द का स्थान उससे बदला हुआ है। और भी कई सारे भिन्नताएँ हैं जिसे मैं परसो दरभंगा जाकर उस पेपर से मिलान करके बता सकूँगा।
माजरा कुछ ऐसा है कि मानवाधिकार आयोग के द्वारा प्रिंसिपल से जवाब मांगने के बाद वह SDO के नाम से मेरे खिलाफ फर्जी शिकायत खुद को बचाने के लिए बना लिया।जब मैंने SDO से उस शिकायत का एक XEROX COPY मांगा तो मुझे फिर से उसी तरह का दस्तावेज टाइप करके दे दिया गया क्योंकि ये साबित करना था कि मेरे खिलाफ वो शिकायत की गई थी,वो फर्जी नहीं थी।इसी को साबित करने के लिए उस शिकायत के जैसा ही शिकायत टाइप करवा करके और साइन,तारीख डालकर मुझे भेज दिया गया।इसलिए एक ही दस्तावेज या एक ही तारीख में उसी SDO के पास की गई उसी शिकायत के XEROX COPY में इतनी भिन्नता है।मतलब दोनों फर्जी है-ये मैंने साबित कर दिया।

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मोदी को यदि उत्तराखंड बाढ़ से पीड़ित को सहायता राशि देनी है तो इसके लिए बाढ़ राहत कोष में सहायता के लिए जागरुकता रैली निकालना चाहिए ना कि चुनाव प्रचार रैली।एक प्रासांगिक सवाल उठाया जा रहा है कि हम सिनेमा देखने या फिजुल में सैकड़ो रुपये खर्च कर देते हैं तो रैली के लिए पाँच रुपये क्यों नहीं।सिनेमा देखने के लिए हम टिकट खरीदते हैं।जिस सेवा के लिए हम पैसा देते हैं,हमें वही सेवा मिलती है।लेकिन मोदी टिकट बेच रहें हैं बाढ़ राहत कोष के लिए और चुनाव प्रचार कर रहें है।यदि ये चुनाव प्रचार के जगह पर बाढ़ पीड़ित के सहयोग के लिए जागरुकता रैली निकालते तो यदि टिकट बेचा जाता तो समझ में आती।बाजार सिध्दांत के अनुकुल दिखती।राजनीतिक पार्टियों को लोगों से चंदा मिलती है जो सिनेमाघरों को नहीं मिलती।सिनेमाघर को चलाने के लिए टिकट बेचा जाता है लेकिन राजनीतिक दल चंदे से पहले से ही चल रही है।यदि ये टिकट बेचना चाहते हैं तो चंदा लेना बंद करे।

मोदी ने अर्थशास्र का एक नया सिध्दांत खड़ा किया है।मैं मोदी के रैली के लिए टिकट बिक्री को पिछला स्टेटस में गैर-कानूनी साबित कर चुका हूँ।ये सिर्फ गैर-कानूनी ही नहीं,अर्थशास्त्र के सिध्दांत के साथ छेड़खानी भी है।अर्थशास्र में उपभोक्ता संतुष्टीकरण या उपभोक्ता संतुलन की बात पढ़ाई जाती है।अर्थांत एक उपभोक्ता संतुष्ट तब होगा जब उसे मिलने वाला लाभ या उपयोगिता उसके द्वारा खर्च किए गए पैसे से ज्यादा हो।आखिर मोदी के रैली से लोगों को कौन ही उपयोगिता मिल रही है?उस व्यक्ति का कौन सा लाभ निहित है जिसके कारण लोग टिकट खरीदे?चाहे वह मिश्रित अर्थव्यवस्था हो या समाजवादी या पूँजीवादी,वह उपभोक्ता के खिलाफ ऐसा एक भी काम नहीं करती जिससे की वह असंतुलन में हो या असंतुष्ट हो लेकिन मोदी का यह काम तो उपभोक्ता असंतुलन का द्योतक हैं।आखिर मोदी के इस सिध्दांत को किस अर्थव्यवस्था का हिस्सा बताया जाए?मैं तो कहूँगा कि इसके लिए मनमानीपूर्ण अर्थव्यवस्था नामक नया आर्थिक मॉडल बनाकर इसके बारे में अर्थशास्र में पढ़ाया जाना चाहिए जहाँ सिर्फ मनमानी चलती है।
मोदी के हैदराबाद रैली के लिए टिकट बिकना गैर-कानूनी है।सभी सिर्फ इतना देख रहे हैं कि मोदी के हैदराबाद रैली के लिए पाँच रुपये की दर से टिकट काफी बिक रही है।आखिर किन किन उद्देश्यों के लिए टिकट बिकता है?क्या राजनीतिक पार्टी के रैलियों के लिए भी टिकट बिकना चाहिए?कोई व्यक्ति तभी पैसे दे सकता है जब उसे सेवा मिले।मतलब उसके उपभोक्ता हित की पूर्ति हो।मोदी अपने पार्टी का प्रचार करके कोई उपभोक्ता सेवा दे रहें हैं क्या?मोदी अपने पार्टी के निहित स्वार्थ का प्रचार करने जा रहे हैं और किसी पार्टी या दूसरे के उद्देश्य की पूर्ति के लिए हम पैसा क्यों दे?दरअसल मोदी दिखाना चाहते हैं कि उनकी लोकप्रियता इतनी है कि लोग टिकट पर भी इन्हें देखने के लिए आतुरित हैं।हो सकता है कि लोग को टिकट खरीदने के लिए इनका पार्टी पैसे देता हो।मोदी टिकट सिस्टम करके गरीब के लिए अपना दरवाजा बंद कर दिया है क्योंकि कोई गरीब लोग पैसे देकर इनका राजनीतिक शो देखने नहीं जाएंगे।ये कहा गया है कि टिकट से जमा पैसे का उपयोग उत्तराखंड आपदा पीड़ित को दिया जाएगा।चाहे उद्देश्य कुछ भी हो,रैली के लिए टिकट नहीं हो सकता।मोदी क्रिकेट मैच कराकर पैसे जमा कर आपदा पीड़ित को दे।

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