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पुलिसिया कानून की बर्बरता

VISION FOR ALL
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पुलिसिया कानून की बर्बरता या CrPC का धारा 162 देखिए।इस धारा के तहत प्रावधान है कि पुलिस के पास दिए गए बयान पर गवाह का साइन होना जरुरी नहीं है।अक्सर जब पुलिस किसी पर झूठा आरोप लगाती है तो फर्जी गवाह तैयार कर लेती है और बोलती है कि फलां फलां लोग आरोपी के खिलाफ गवाह है।पुलिस के पास कोई रिकार्ड नहीं होता कि आखिर उसने गवाही दी या नहीं।मान लीजिए कि आपने गवाही नहीं दी और उसके बाद भी पुलिस कह रही है कि आपने गवाही दी।फिर आप क्या कीजिएगा?आपको कोर्ट में पुलिस के दवाब में आकर कबूल करना पड़ सकता है कि आप गवाह हैं भले ही आप गवाह न हो।पुलिस के दवाब में आपके कारण किसी निर्दोष को सजा मिल सकता है।ये बात सही है कि यदि साइन होना भी जरुरी होता तब भी पुलिस किसी को जबरन पकड़कर गवाह बनाकर साइन करा लेती लेकिन उतना करना इतना आसान नहीं होता जितना अभी है।अभी पुलिस को गवाह को पकड़ने की भी जरुरत नहीं है।जब सामने में दवाब दिया जा रहा हो तो आप मानसिक रुप से तैयार होकर पुलिस के खिलाफ बोल सकते हैं लेकिन बाद में मालूम चले कि आपको फर्जी गवाह बना दिया गया है तो आप खुद को मानसिक रुप से तैयार नहीं कर सकते।
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कुर्की जब्ती-मैं इस अदालती कानून को बर्बर मानता हूँ।किसी आरोपी पर गिरफ्तारी वारंट जारी हो जाने के बाद फरार हो जाने पर उसके संपत्ति को जब्त कर लेना उसके संपत्ति के अधिकार का हनन है जो मौलिक अधिकार हुआ करती थी लेकिन अब सिर्फ एक संवैधानिक अधिकार है।उस आरोपी के घर की संपत्ति का कुर्की जब्ती किया जाता है।उस आरोपी के कारण उसके घर वाले के भी संपत्ति के अधिकार का हनन किया जाता है।जिस संपत्ति का कुर्की जब्ती किया जाता है उस संपत्ति में तो उस आरोपी के घर वाले की भी हिस्सेदारी होती है फिर ऐसा क्यों किया जाता?जब उस आरोपी के साथ उसके घर वाले को भी सजा नहीं दिया जा सकता फिर उस आरोपी के कारण उसके घर वाले को भी संपत्ति से हाथ क्यों धोना पड़े?उस आरोपी के कारण अपने संपत्ति से हाथ धोकर उसके घर वाले भी अन्याय क्यों सहन करे?आरोप साबित भी नहीं हुआ,सजा सुनाई भी नहीं गई लेकिन आरोपी व उसके घर वाले को संपत्ति से हाथ धोना पड़े!ऐसा क्यों?इस तरह का कानून लोगों में दहशत पैदा करने के लिए प्राचीन दंड प्रणाली में बनाया गया था ताकि लोग प्रभुत्व वर्ग या शासक वर्ग का गुलाम बने रहे लेकिन इसका पालन अभी भी किया जा रहा है।
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YOUTUBE पर दिखाया गया है कि नेहरू का निधन Sexually Transmitted Disease से हुआ।ये बात कुछ सही नहीं लगता कि नेहरु का मौत SEXUALLY TRANSMITTED DISEASE से हुआ।क्योंकि एडविना से नेहरू का दोस्ती 1947 में ही खत्म हो चुकी था।इसलिए 17 साल बाद क्यों संक्रमण होगा?हालाँकि इस बात में सच्चाई दिखती है कि एडविना का जिन्ना और नेहरू दौनों से दोस्ती थी और माउंटबेटन की पत्नी होने के कारण ब्रिटिश शासन ने एडविना का उपयोग नेहरू को भारत विभाजन के लिए मनाने और जिन्ना के साथ दोस्ती होने के कारण जिन्ना को भी खुश करने के लिए किया ताकि नेहरू और जिन्ना दोनों ही सत्ता के लोलुप में आजादी और विभाजन स्वीकार कर ले।
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उस अपराधी की चालाकी देखिए।उसने TRANSFER के लिए REQUEST भेज दिया लेकिन TRANSFER नहीं हुआ।सबकुछ हाई लेबल कंसपिरेसी का हिस्सा है।एक ओर REQUEST भेज दिया ताकि लोग को लगे कि ये खुद TRANSFER कराना चाहता है लेकिन समिति इसका TRANSFER करती ही नहीं।लोग को वो बता सके कि वो अच्छा है इसलिए सात साल हो जाने के बाद भी समिति TRANSFER नहीं करती-इसी को बताने के लिए उसने REQUEST भेजा।उसका TRANSFER नहीं किया जाना पहले से ही मैनेज था।REQUEST भेजना लोगों को दिखाने का तरीका भर था।ये व्यक्ति उस स्कूल में अपना पैठ जमा चुका है और TRANSFER होने के बाद यहाँ जितनी धांधली करते हैं उतना दूसरा जगह नहीं कर पाएँगे।समिति के अधिकारियों को इनकी धांधली में हिस्सेदारी मिलती है इसलिए समिति इनका TRANSFER नहीं करती।ये अपने मन मुताबिक स्कूल में घटिया किस्म का कोचिंग चलवाता है,बाहर भी अपना धंधा करता है और सारे विभाग के फंड को उस विभाग की आंतरिक स्वायत्तता को छीनकर अपने कब्जे में करके लूटता है।फिर ये व्यक्ति TRANSFER क्यों लेगा?

यदि उसे सही में TRANSFER चाहिए तो REQUEST भेजने के बाद भी TRANSFER नहीं करने पर समिति के अधिकारी से बात करके TRANSFER करा सकता है।
वह एक TECHNICAL अपराधी है।उसने कई को जबरन मानसिक रुप से परेशान किया,कुछ को फंसाया लेकिन बाहर नहीं किया,कुछ को फंसाए बगैर ही बाहर कर दिया और कुछ को फंसाने के साथ बाहर किया।लेकिन ये अपराधी खुद को बचाने के लिए दवाब डालकर TC का APPLICATION लिखाना नहीं भूलता ताकि ये कह सके कि उसने बाहर किया ही नहीं।आरोप बनाकर भी लिखवा लेता है ताकि मामला जिसे फंसाया उसके खिलाफ ही रह जाए।उसने एक लड़की से उसी के खिलाफ लिखवा लिया कि वो बदचलन थी और उसकी माँ से भी उस आरोप पर साइन करवा लिया ताकि उसे बाहर करके किसी दूसरे लड़की को पैसे लेकर उसके सीट पर रख सके।आखिर कोई लड़की खुद के खिलाफ और कोई माँ अपने बेटी के खिलाफ स्वीकार कैसे कर सकती है?वो भी तब जब उसके खिलाफ कोई सबूत भी नहीं हो,मानो की वह लड़की खुद उसके पास जाएगी और बोलने लगेगी कि मैं बदचलन हूँ।मुझे उसके खिलाफ अभी तक लगभग बीस ऐसे लड़के-लड़कियों के पक्ष में सबूत मिला है जिसे उसने निजी स्वार्थ के लिए प्रताड़ित किया।ना जाने आगे वह कितना और का दमन करेगा।

यदि वह अपराधी TRANSFER नहीं होना जा रहा है तो इसका एक और कारण ये है कि वो सोचता है कि उसके कारण से सभी दवाब में रहेगा और उस स्कूल का कोई भी उसके खिलाफ कुछ नहीं बोलेगा।कोई कुछ बोले या ना बोले उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।फर्क इस बात से सिर्फ पड़ता है कि न्यायापालिका सबसे ज्यादा छिपी हुई भ्रष्ट संस्था है जो पूर्वाग्रह से ग्रसित है और मुझे एक आरोपी समझकर अपने परंपरागत सोच के अनुरुप दोषी मान लिया था।पैसे के कारण मैनेज नहीं किया जा रहा है बल्कि जज की गंदी सोच अपने आप मैनेज कर देती है।फर्क इस बात से पड़ता है कि न्यायापालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष हो और सबूत को सुने।आज मैं सिर्फ अपने पक्ष में ही नहीं बल्कि लगभग बीस के पक्ष में सबूत देने में सक्षम हूँ।लेकिन कानून के मुताबिक जज भी एक अपराधी ही है जो वैसे सरकारी पदधारी अपराधी को बचाकर और उसका मनोबल बढ़ाकर अपराध करने के लिए उकसाता है।ऐसे जज पर तो धारा 120 B या आपराधिक साजिश की धारा लगना चाहिए क्योंकि जब दो या दो से अधिक लोग अपराध में शामिल होते हैं तो ये धारा लगती है और जज अपराधी को बचाकर उसे उकसाने में शामिल है।अपराध करने के लिए उकसाने(INCITEMENT OF OFFENCE) का धारा भी जज पर लगना चाहिए।

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