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सवा साल बाद न्याय

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कल सवा साल बाद केन्द्रीय सूचना आयोग का मेरा पक्ष में एक आदेश आया है|जैसा कि मैंने आपको बताया था कि प्रिंसिपल ने मुझे मुख्यालय,नवोदय विद्यालय समिति में उसके खिलाफ शिकायत करने के बाद फंसा करके बाहर कर दिया था|मैंने मुख्यालय जाने से पहले संभागीय कार्यालय में भी ईमेल से उसकी शिकायत की थी|लेकिन उस शिकायत को प्रिंसिपल के पास उसे दिखाने के लिए भेज दिया गया और उसने ये देखकर कि समिति भी उसका साथ दे रहा है,उसने मुझे फंसा दिया|केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के बाद नवोदय मुख्यालय पहले ही स्वीकार कर चुकी है कि शिकायत उसके पास भेज दिया गया|एक अन्य आदेश में सूचना आयोग ने संभागीय कार्यालय द्वारा जबरन बहाना बनाकर के मुझे सूचना न देने के आलोक में उसके अपीलीय प्राधिकारी को अविलंब जांच करने का आदेश दिया है|जैसा कि मैंने कहा कि मैंने संभागीय कार्यालय में भी शिकायत किया था और उसके बाद मुझे फंसा दिया गया|जांच से कम से कम ये तो जाहिर हो ही जाएगा कि मैंने उसका शिकायत किया लेकिन उसे बचाया गया|चूँकि मुझे उसका शिकायत करने के बाद फंसाया गया है इसलिए न्यायपालिका का स्वतंत्र और निष्पक्ष रहने पर ये जाहिर हो जाएगा कि मैं र्निदोष हूँ|

न्याय का बुनियाद है कि हजारों अपराधी छूट जाए लेकिन एक भी र्निदोष को सजा नहीं होना चाहिए|इस बात के आधार पर झूठे फंसाने वाले के खिलाफ उस अपराध में जितनी सजा र्निदोष को मिलती,उससे हजार गुणा ज्यादा सजा झूठे फंसाने वाले को मिलना चाहिए|लेकिन सिर्फ यह एक जुमला भर ही है|झूठे फंसाने वाले के खिलाफ कोई विशेष सजा का प्रावधान नहीं है|कई बार आरोप को झूठा कर दिया जाता है लेकिन वह झूठा नहीं होती|वहाँ पर ये संभावना भी होता है कि ऐसा हो सकता है लेकिन सबूत के अभाव में छोड़ दिया जाता|ऐसे मामलों में झूठे फंसाने वाले पर मुकदमा नहीं चल सकता|लेकिन मेरा केस देखिए|मुझे 6 महीने बाद,उसका शिकायत करने और विरोध करने के कारण फंसाया गया|साथ ही न ही मेडिकल टेस्ट हुई,न ही उस बच्चा ने वैसा कहा और न ही कोई चश्मदीद गवाह|ऊपर से बदल बदल कर बयान दिया गया और कहीं पर दो दिन पहले हस्ताक्षर कर दिया गया तो कहीं पर हस्ताक्षर किया ही नहीं गया तो कहीं पर तारीख नहीं डाला गया तो कहीं पर बच्चा के जगह उसके भाई से लिखवा लिया गया|लेकिन न्यायपालिका अपनी धारणा से ग्रसित है कि मुझे फंसाया गया इसलिए मैं गलत हूँ|सबूत की समझ ही नहीं है|

सहसा मन किया और दरभंगा के DMCH का इमरजेंसी वार्ड चला गया|इमरजेंसी वार्ड को देखने के बाद कोई भी कह सकता है कि यह नाम का इमरजेंसी वार्ड है|ऐसा एक भी डॉक्टरी यंत्र वहाँ नहीं दिखेगा जो इमरजेंसी उपचार के लिए जरुरी है|आखिर पैसे गई कहा?इमरजेंसी वार्ड में यदि डॉक्टरी यंत्र न हो तो रोगी मरेंगे ही लेकिन इस ओर मीडिया का ध्यान कभी नहीं गया|यदि इतना ज्यादा लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा है तो ऐसे लूटेरे को बचाने के लिए उनके हित में बनाया गया कानून जिम्मेवार है|यदि आप गहराई से सोचे तो पैसे लूट लेने के कारण डॉक्टरी उपकरण की अनुपलब्धा से हुई मौत ऐसे लूटेरे द्वारा की गई हत्या है|कम से कम गैर-इरादतन हत्या का केस तो बनता ही है|लेकिन इसे अभी तक medical negligence भी नहीं माना गया है|जब तक सरकार ऐसे लूट को आपराधिक धाराओं के साथ जोड़कर नागरिकों को उस धारा के अंतर्गंत केस करने का अधिकार नहीं देगी,तब तक ऐसे ही मासूस लोग मरेंगे|

सुशील मोदी और प्रवीण अमानुल्लाह के द्वारा ठेके पर वस्तुओं की डेलीवरी करने वाली एक कंपनी से 15 लाख घूस लेने और online apply किए गए जाति,आवासीय,आय प्रमाण पत्र को निर्धारित समय में बनाए बगैर फर्जी रुप से दिखाना कि बन गया है,के बाद बिहार सरकार की गड़बड़ी से जुड़ा एक अन्य सबूत भी मिला है|एक मित्र जिन्होंने NEET qualify किया है,अपने भाई का सेंट्रल यूनिवर्सिटी में नामांकन के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से मदद चाहते हैं|इसी संदर्भ में मैंने जिज्ञासा नामक बिहार सरकार के हेल्प लाइन से पूछा कि कल सोमवार को जनता दरबार होगी या नहीं|इन्होंने कहा कि इन्हें इसकी जानकारी नहीं है|फिर सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी को फोन किया तो मालूम न होने के कारण काट दिया|सामान्य प्रशासन विभाग का ही एक अन्य अधिकारी को फोन किया और इन्होंने कहा कि यदि जनता दरबार स्थगित होने का विज्ञापन नहीं छपा है तो जनता दरबार होगी|मतलब इन्हें भी मालूम नहीं हैं कि कल जनता दरबार होगी या नहीं|चूँकि जनता दरबार स्थगित होने का विज्ञापन नहीं छपा है इसलिए मुझे मालूम चल गया कि कल जनता दरबार होगी|
इस घटना से जाहिर है कि इन अधिकारियों को अपने काम से मतलब नहीं है|

अभी तक प्राप्त मोदी के खिलाफ सबूत-
1.फोन टेपिंग जिसमें एक IB अधिकारी और मोदी के सहयोगी के बीच हुई बातचीत में ये कहा गया है कि मोदी और अमित शाह ने इशरत जहां और तीन अन्य के फर्जी मुठभेड़ के लिए इजाजत दे दी है|
2.उस समय के गुजरात के एक पुलिस अधिकारी का बयान जिसमें कहा गया है कि मोदी के इशारे पर इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ हुई|Teesta Setalvad ने मोदी को मीटिंग में बोलते नहीं देखा लेकिन इस पुलिस अधिकारी ने तो देखा है|
3.मोदी का एक मंत्री सुरेश मेहता का बयान कि मोदी ने मीटिंग में कहा था कि अब हिन्दुओं को जगने का समय आ गया है|
4.विश्व हिन्दू परिषद के नेता जयदीप पटेल का मोदी के कहने पर गोधरा कांड स्थल पर तुरंत जाकर हिन्दुओं को उकसाना|
5.IPS अधिकारी संजीव भट्ट को मोदी द्वारा फंसाया जाना और सुप्रीम कोर्ट द्वारा संजीव भट्ट के खिलाफ केस को बंद कर देना|
जो लोग मोदी का समर्थन करते हैं उन्हें शर्म आना चाहिए|क्या आपको सिर्फ नेतृत्व के लिए मोदी,गाँधी परिवार जैसा अपराधी ही दिखता है?आपके पास महात्मा गाँधी के खिलाफ कोई सबूत नहीं होती,उसके बाद भी उनके खिलाफ बोलते हैं|लेकिन मोदी के खिलाफ तो सबूत है लेकिन फिर भी पक्ष लेते हैं|

आपको मालूम ही होगा कि संपति का अधिकार अनुच्छेद 31 के तहत एक मौलिक अधिकार था लेकिन 44वीं संवैधानिक संशोधन द्वारा 20 जून 1979 से इसे मौलिक अधिकार से हटाकर एक नया अनुच्छेद 300 A जोड़कर उसमें संपति के अधिकार को सिर्फ एक कानूनी अधिकार तक सीमित करके रख दिया गया|संपति के अधिकार को मौलिक अधिकार से क्यों हटाया गया?ताकि मनमानीपूर्ण तरीके से सरकार आम लोगों का जमीन हड़पकर निजी कंपनी को दे दे और कोई आदमी इस बात को न्यायालय में चुनौती न दे सके|ये बात सही है कि लोकहित के कार्य के लिए किसी के संपति का अधिग्रहण किया जा सकता है जैसा कि पुराना वाला भूमि अधिग्रहण कानून में भी प्रावधान है|लेकिन किसी बिल्डर को बहुमंजिला इमारत बनाने के लिए जमीन हड़पकर दे देना कौन सा लोकहित का कार्य है?ऐसा भी तो किया जा सकता था कि संपति के अधिकार को मौलिक अधिकार में रहने दिया जाता और साथ ही ये जोड़ दिया जाता कि सरकार लोकहित के लिए निजी संपति का हरण कर सकती है|लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि सरकार के द्वारा जबरन जमीन हड़पने की स्थिति में लोग न्यायालय में चुनौती दे सकते थे लेकिन अब मौलिक अधिकार न होने के कारण चुनौती नहीं दिया जा सकता|

भ्रष्टाचार के केस में सबूत किसे माना जाए,ये स्पष्ट नहीं है|मान लीजिए कि सुरेश कलमाड़ी ने राष्ट्रमंडल खेल के Opening Ceremony में स्टेडियम में एक बड़ा वाला गुब्बारा लगा दिया जिसका कीमत कागज पर उसने 50 करोड़ दिखाया|लेकिन कोई भी उसे देखकर कह सकता है कि उसका कीमत एक करोड़ से ज्यादा नहीं हो सकता|जब कोई जाँच अधिकारी जाँच करता है तो वह मैनेज कर देता है और बोलता है कि वह 50 करोड़ का है|एक एक आदमी बोल रहा है कि उस गुब्बारे की आकार और विशेषता के आधार पर उसका बाजार मूल्य एक करोड़ से ज्यादा नहीं हो सकता है लेकिन न्यायालय जाँच अधिकारी के बात को ही मानती है|क्या वह व्यक्ति जिसने इस गुब्बारे के एक एक विशेषता को नजदीक से देखा,वह चश्मदीद गवाह नहीं है|वह बिल्कुल चश्मदीद गवाह है लेकिन कानून भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए उसे चश्मदीद गवाह नहीं कहती|यदि कोई काम घटिया स्तर का किया जाता या नहीं किया जाता लेकिन कागज पर सबकुछ सही दिखाया जाता है तो आम लोगों की गवाही को चश्मदीद गवाह समझना चाहिए और यदि कम से कम पाँच लोग ये साबित कर दे कि बाजार मूल्य के अनुरुप काम नहीं हुआ तो उसे सबूत समझना चाहिए|

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